ये जश्ने आज़ादी है ?
प्रधान मंत्री जी ने देश को
बड़ी_ बड़ी सौगातें ,
महंगाई ,परमाणु करार दिए हैं
तो अमर सिंह भी कहाँ कम हैं ?
मोटी रकम भिजवा कर,
संजीव सक्सेना को फरार किये हैं |
बाढ पीड़ित क्षेत्रों का दौरा कर
प्रधानमंत्री जी लौट आये हैं
कितनी मौतें हुई ,कितनी फसलें क्षतिग्रस्त हुईं
जायजा ले आयें हैं
राहत कार्यों में कोताही न बरतने के निर्देश दे
सात सितारा होटल में बिछौना लगवाएं हैं
अब केंद्र सरकार से अरबों रुपयों की
अनुदान- राशि लेने का प्लान बनाये हैं |
हिंसा और आगजनी की आंच पर
अपने स्वार्थ की रोटियाँ सेकने के लिए
मंत्री जी ने ,आतंकवादियों द्वारा बिछाए गए
बमों के जाल पर,जनता से न घबरा कर ,
एकजुट रहने के नारे लगाये हैं ,
सी.बी.आई .द्वारा जांच के निर्देश भी निकलवाए हैं |
नेता ,आरक्षण के नाम पर
शिक्षित जनता तक को गुटों में बाँट दिए हैं
अंग्रेजों की तरह "फूट डालो राज करो" की नीति अपनाये हैं
पोंगा पंडितों ने ,राम -नाम की लूट के सहारे ,
धर्म के ठेकेदारों ने वाक -पटुता के सहारे, '
"नए मौसम की नई फसल " की तरह उगे नेताओं ने ,
ठेके दिलवाने के बहाने ,महानगरों में न सही ,
गंगा -जमुना के किनारे अपने मठ बनवाये हैं ,
भगवान को दरकिनार कर
स्वयं को किनारे लगाये हैं |
राजनीतिक दांव पेंचों के चलते
स्वार्थ और संकीर्णता के बोझ तले
वो मेरा देश" भारत "कहाँ खो गया ?
वो मेरा वतन "हिन्दुस्तान "कहाँ खो गया ?
६० वर्षों में कहाँ गई वो देश की रवानी ?
लोकतंत्र में किधर बह गई वो देश की जवानी
कहाँ गई वो माताएं ,वो पुतली ,जीजाबाई
कहाँ गई मैडम कामा कहाँ ,वो पन्नाधाई ?
कहाँ गए राणा प्रताप वो गढ़ चितोड़ की हाड़ी रानी ?
कहाँ गई वो छैल -छबीली ,वो झांसी की रानी ?
माताएं बेखबर हो गईं ,पूत सो गए
बागवां रखवाली के नाम पे , खार बो गए
चुरा रहे गंध गुलों की ,अपना गुलशन गुलजार कर रहे ,
क्या हम आजादी का जश्न मना रहे ?
माना खत्म हो गयी आज़ादी की जद्दोजहद,
आज़ादी की जंग, लेकिन
तूफानों से निकलकर कश्ती जिन्हें संभलाई थी,
वो जवानी क्यों सो गयी ?
कसम खायी थी, देश की आज़ादी की रक्षा की
फिर, वो जवानी, देश की कश्ती को,
क्यों साहिल पे डुबो गयी, क्यों ?
उठें, जागें
कश्तियों को फिर से किनारा दिखाएँ,
तिरंगे को एक बार फिर लहराएँ
तिरंगे को एक बार फिर लहराएँ
प्रतिज्ञा करें ,संकल्प दोहराएं
चरित्रहीनता से ऊपर उठने का
आतंकवाद से लड़ने का
जितने पाक इरादों से जिहाद के नाम पर
आतंकी आतंक फैलाते हैं, उतने ही पाक इरादों से
इन्हें सजा देने का
जाफ़र जयचंदों से देश को बचाने का,
खुद जयचंद न बनने का
भगतसिंह, खुदीराम ने मादरे वतन की कसम खायी थी,
हम उनकी शहादत की कसम खाएं,
हमारे देश को हमारा समझें
ऐसा मन बनायें,
देश की तरक्की की आरजू जगाएं
रामप्रसाद बिस्मिल की,
"सरफरोशी की तमन्ना"
एक बार फिर दोहरायें
जब तक जान न हो जुदा,
तन से
देश की धरती को जन्नत बनाने के,
ख़्वाबों को हकीकत बनाएं,
हकीकत बनाएं |
मोहिनी चोरडिया
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ReplyDeleteदेश प्रेम की कविता हे
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