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Saturday, December 31, 2011

भोर

यही समय होता है ,
सुखद एहसास का
जब मैं मन के घोड़ों पर चढ़ी
ऊँचे और ऊँचे पहुँच जाती हूँ
जहां मिलन होता है
प्रकृति की अनमोल धरोहरों से
नीलगगन से बातें होती हैं
तब तक ही लाल रंग की छटा लिये
भगवान भास्कर प्रकट हो जाते हैं
जगत को नहला देते हैं
अपने प्रकाश से
मुझे स्पर्श करते हैं ,
अपनी बाहों में लेते हैं
अपने किर्न्नों का विस्तार कर
कभी बादल मुझे अपने आगोश में
भर लेते हैं
मन का हर कोना जागृत हो जाता है
स्फूर्ति से भर जाता है
तृप्त हो जाता है
पूरे दिन की ऊर्जा मिल जाती है
इसी समय में
नीचे उतरते-उतरते
कर्णप्रिय कलरव पक्षियों का
सुकून देता है कानों को
दिनचर्या के लिये अपने-अपने नीड़से निकलकर
खुले आसमान में उनकी  पंक्तियों भरी उड़ान
प्रफुलित कर जाती है मन को
और  नीचे आने पर
हरित वस्त्रों पर रंगीन फूलों का लिबास पहने
प्रसन्न वदन  धरती  खिली खिली सी
जैसे मिलन हो गया हो प्रियतम से
प्रकृति की ये मनमोहक छटाएं
भर देती हैं मन को
सुकून से
पुलक से
आनंद से |

मोहिनी चोरडिया

             

अस्तित्व की तलाश


मेरी मित्र ने एक दिन कहा 
में" सेल्फ्मेड " हूँ 
में असमंजस में पड़ी रही ,
सोचती रही ,
क्या ये सच है ? 
भावो  की धारा ने झकझोरा 
एक नवजात शिशु की किलकारी ने 
अनायास ही मेरा ध्यान बटोरा
इस शिशु को बनाने वाले बीज 
कह रहे थे ,माते | हमें धारण करो
हमारा पोषण करो ,
हमें अपने रक्त से सींचो 
तभी हम अपना अस्तित्व 
बनाये रख सकेंगे .
जैसे  बीज बोने के बाद 
धरती उसे धारण करती है  
आकाश से पिता तुल्य सूर्य 
अपनी ऊष्मा देते हैं ,उर्जा देते  हैं 
बदली अमृत तुल्य जल बरसाकर 
अपना प्यार लुटाती है   .
माली उसे सींचता है अपने दुलार से 
धरती का कण -कण 
या कहें पूरी कायनात 
उस बीज की सुरक्षा में लग जाती है 
उसका अस्तित्व बचाती है  
और एक दिन बीज पेड़ बनता है  ,
मधुर पेड़ ,जिसमें 
सुंदर -सुंदर फूल खिलते हैं 
प्रकृति की अभिव्यक्ति का
सबसे सुन्दर रूप 
उस दिन देखने को मिलता है .
शिशु को भी एक पुरुष ,
योग्यतम पुरुष बनाने में ,
कई अनजान शक्तियां 
अपनी ताकत लगा देती हैं   
तब जाकर प्रकृति की
श्रेष्ठतम रचना सामने आती  है 
और यदि वह कहे की में "सेल्फमेड" हूँ  तो 
यह उसकी नादानी हे ,उसका अहंकार है 
जो एक दिन उसे वापस 
पहुंचा देगा वहीँ   ,उसी निचले धरातल पर 
जहाँ उसका अस्तित्व 
फिर-फिर अभिव्यक्ति की तलाश में होगा |


मोहिनी चोरडिया 

सर्दियों की सुहानी धूप


आज
मैं खुश हूँ
लगातार बारिश के बाद निकली
धूप देखकर
एक मासूम से बच्चे
की फेंकी मुस्कान
देखकर
मेरे घर के छोटे से बगीचे में
एक कली की
पखुड़ियाँ खुली देखकर
बहुत दिनों बाद पिताजी को
बिस्तर से उठ
दो कदम चलते देखकर ।
मेरे जीवन-साथी का
एक खुशनुमा,
सारी खबरें बताता
पत्र पढ़कर
मेरे चेहरे की मुस्कान
डेढ़ इंच हो गई
आँखों की चमक भी
बढ़ गई
छोटी-छोटी खुशियाँ मिलकर
दोगुनी हो गईं
आज मैं खुश हूँ
बहुत खुश हूँ
बहुत समय बाद
सर्दियों की सुहानी
धूप देखकर ।

मोहिनी चोरडिया

मुहाने पर ज़िंदगी


लगता है
घर भी सड़क बन गए 
व्यस्तता का पर्याय बने अब घर 
कोलाहल और बस कोलाहल 
अंदर, बाहर, चारों ओर कोलाहल 
जन्म के समय कोलाहल ,
मृत्यु के समय कोलाहल 
जीवन के दोनों छोरों पर कोलाहल 
शांत प्रशांत जीवन जीने की चाह 
निराशा देती ही दिखती है
लगता है प्यार की विदाई हो चुकी है
जीवन से 
जीते हैं सिर्फ नफरत को हम 
चेहरे पर लिखे दिखते हें 
नफरत के नासूर 
जो साफ़ पढॅ भी जा सकते हैं
दिमाग व्यस्त रह्ता है लड़ाइयां लड़ने में 
कभी शीत युद्ध का शंख बजाता 
तो कभी घमासान की घोषणा करता 
भावनाएं विकराल रूप लेतीं ,
जद्दोजहद करती  
कभी बेजान बेमुर्र्व्वत सी ,
भाटे की तरह उतरतीं 
पग-पग ,डगर-डगर कठिनाइयों से भरे 
अपने पराये का भेद मन में धरे 
अपनों से बेगाने बने
चलते रहते हैं हम
सुख -सुविधाओं की चाह में 
जीवन की जद्दोजहद में आत्मा की आवाज़ 
कब दब जाती है ,
ज़मीर कब मर जाता है 
इंसान को पता ही नहीं चलता 
बस!जीवन को ढोते ही रहते हैं हम  
मुहाने पर अड़े  
अहंकार में पड़े 
मुहाने से आगे बढॅ
तभी तो विसर्जन होगा 
कोलाहल का ,ज़द्दोजहद का ,अहंकार का 
मिलन होगा विराट से 
उस समय कोलाहल ,शोर 
सन्नाटा , नीरवता 
सब समाप्त हो जायेंगे 
बचेगी बस ..असीम शान्ति ,शान्ति और शान्ति 


मोहिनी चोरडिया  

स्फुरण


बांसती बेला है
रंगों का मेला है
गंधों का रैला है
ऐसे में कौन, बैठा अकेला है ?

प्यार से पुकार लो
जी भर दुलार लो
छोटा सा जीवन है
प्रीत की फुहार लो ।

लता पेड़ गले मिले
कली भौंरों के मन खिले  
धरा अम्बर भी मिले
फिर क्यों किसी का मन मैला है ?

चली है प्यार की पुरवाई
प्रकृति ने है सरगम गाई
पशु-पक्षी सबके मन को है भाई
इन्सान, तुम भी मन को उजाल लो ।


मोहिनी चोरडिया 

निर्ग्रन्थ


ग्रन्थियाँ छोडें  निर्ग्रन्थ बनें हम
कुण्ठाएँ छोड़ें कुण्ठारहित बनें हम
भय छोड़ें भयमुक्त रहें हम
द्धन्द्व छोडं  निर्द्वंद बनें हम|
ग्रन्थियां, 
हीन भावना दर्शाती हैं
कुण्ठाएँ पालना
कमज़ोर होने की निशानी है | 
भय ?
क्या लाये थे, जिसे छोड़ने का भय ?
और मृत्यु या मौत का भय ?
कहा है - मौत का एक दिन मयस्सर है
नींद रात भर क्यों नहीं आती  ? 
शरीर और मन की जर्जरता से उबरने का एक
जरिया है मृत्यु तो
द्वन्द्व कैसा और किससे ?
स्वयं से क्यों लड़ना ?
उहापोह छोडें
नेक काम करें, नेक राह पर चलें
उस परमसत्ता की और बढ़ें
यानि कि आत्मा की और मुडें
जो हमारे ही भीतर है
ज्ञानमय, ग्रन्थिरहित,
भयमुक्त, निर्द्वंद
निरंजन निराकार ।

मोहिनी चोरडिया 

मुक्तक



 हमने कुछ किया तो उसे
 फ़र्ज  बताया गया 
 उन्होंनें कुछ किया तो उसे
 क़र्ज बताया गया 
आओ! विसंगतियां  देखें जीवन की 
अपनी सुविधानुसार हमें
शब्दों का अर्थ समझाया गया |


पाकर खुशी मेरे
आँसू निकल पड़े ,
उन्होंनें समझा मै दु:खी हूँ 
मै अन्दर उदास,बाहर से हँस रही थी 
उन्होंने समझा मै खुश हूँ ,
चीजें जैसी दिखती हैं
वैसी होती नहीं 
और कभी-कभी जैसी होती हैं 
वैसी दिखतीं नहीं 
तभी तो उन्होंनें, न मेरी हँसी के 
पीछे छिपे दर्द को समझा 
और न उस खुशी को ,
जो आंसुओं में बह रही थी  |


मोहिनी चोरड़िया 


मुक्तक


तुम करीब आये हो प्रियतम
मन बन गया मधुबन मेरा
तुमने प्रीत का रस उंडेला 
खिल गया मन कमल मेरा |


मंजिल की बात करना 
मुश्किल राहों के बगैर 
ऐसे  ही है जैसे सोचे कोई 
एक गुलाब काँटों के बगैर |


फूलों का मुस्कुराना 
काँटों के बल पर ही है 
वे अक्सर बुरी नज़र का 
शिकार हो जाते हैं ,
जिन गुलों की हिफाज़त
काँटे नहीं करते  | 

मोहिनी चोरडिया 

वो पल


एक पल प्यार है
एक पल खुमार है
एक पल बयार है
एक पल फुहार है,
कौन जाने,
कब फिसल जाये
जीवन की मुटठी से,
क्यों न इसे बांध लें,
नयनों के कोने में|

इसी पल ने चाहत दी
इसी पल ने दी खुशी
इसी पल ने बुने गीत
इसी पल में मिला मीत
क्यों न इसे उतार लें
हृदय के कोने में |

यह पल चला गया, तो
फिर नहीं आयेगा
यह पल चला गया, तो
मीत रूठ जायेगा
क्यों न उसे पुकार लें,
प्यार की गुहार से ।

मोहिनी चोरडिया

2012image


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पर्यावरण


मनुष्य तुम हो प्रज्ञावान
मत बने रहो सिर्फ नीतिवान
समझो समय की चाल
करो विवेक का इस्तेमाल, वरना,
वरना करना पडे़गा मलाल ।

जीवन जीने की कला सीखो
वृक्ष लताओं को ही नहीं
प्रकृति के कण कण को सींचो
अन्यथा पडे़गा दुष्काल ।

हवाओं का हमसे रिश्ता है गहरा
हमारी तुम्हारी ज़िद से देखो, पानी भी ठहरा
बहने दो उन्हें अविरल अबाध
तभी देगें ये हमारा साथ ।

मैत्री सदभाव का रिश्ता बनाओ
पशु पक्षियों पर दया दिखाओ
मत करो इन पर जुल्म मनमानी
वरना उठानी पडे़गी हानि ।

बिना इन सबके, जीना है मुश्किल
फिर क्यों बने हो तुम, इतने तंगदिल ?
इन सबका करो कल्याण
वरना करना पडे़गा मलाल |

जिओ और जीने दो की वाणी
सबके लिए है कल्याणी
अध्यात्म से मिलकर विज्ञान भी
हो उठेगा निहाल |

मोहिनी चोरडिया

प्रकृति के संग


चलो, प्रकृति के संग हो लें
नदी झरनों के संग डोलें,
तितलियों के संग बोलें
मूक पशुओं की
आँखों को तोलें
चलो, प्रकृति के संग हो लें ।

पेड़-पौधों की संवेदनाओं को 
अंक में भर लें
धरती की सहनशीलता को
उर में लें
हमारी करुणा की धारा का जल,
इन सबको आप्लावित करे
ऐसा कोई संकल्प
मन में संजों लें।
चलो, प्रकृति के संग हो लें ।

गुलाबों से रिश्ता जोड़ें,
काँटों भरे पथ को भी सह लें
गावों की और जाती
पगडंडियों पर खेलते
धूल धूसरित बच्चों से
नाता जोडें
चलो, प्रकृति के संग हो लें |
इन्द्रधनुष से आकर्षक रंगों को फैलायें,
आवारा बादलों से छन कर आते
प्रकाश में नहायें,
खड़ी फसल की
कच्ची बालियों को सहलायें
मिट्टी के, लिपे पुते घरों के
आंगन की खटिया पर,
कुछ देर सो लें,
चलो, प्रकृति के संग हो लें ।

मोहिनी चोरडिया

मेरे मन


मेरे मन!
तुमने अपनी खुशी खो दी ?
मायूस हो गये,
मुर्झा गये ?
किसी ने तुमको झिड़का
या दर्द दिया,
अपमानित, प्रताड़ित किया और
तुमने घुटने टेक दिये, क्यों ?
क्यों किसी की ओछी बातों से ,
अपशब्दों की बौछार से,
कठोर शब्दों के तीरों से
छलनी हो गये ?
कमज़ोर हो गये ?
समझना, वो शब्द
तुम्हारे लिए थे ही नहीं
सिर्फ किसी को अपने
दिल की कड़वाहर निकालने का
माध्यम मिल गया था ।
सुना होगा,
जो जिसके पास होता है,
वही तो देता है ?
जीवन हार मानने का नाम नहीं,
संघर्ष भी इसे मत समझना
मान अपमान से ऊपर उठकर,
शांत बन जाओ ।
उन, कड़वी बातों को
अपने ऊपर से, ऐसे गुज़र जाने दो
जैसे आवारा बादल,
बस! जैसे ही उन
घने काले बादलों की पर्त हटेगी
तुम सूरज की तरह निकल आना
नहाये, धोये से,
स्फूर्त तरोताज़ा ।

मोहिनी चोरडिया


कोख का दर्द


मेरी कोख नहीं हुई
अभी तक उजली
क्योंकि उसने दी नहीं
मुझे, अभी तक एक बेटी
कहते हैं, बेटा बाप के
बुढ़ापे की लाठी होता है ।
लगती है पुरानी बात
मैं तो देखती हूँ
बेटियों को माँ-बाप के लिए
व्यथित होते
उनका दर्द, उनका संघर्ष समझते, और
बेटों को, अपने स्वयं के परिवार
या दोस्तों के साथ समय बिताते
गुलछर्रे उड़ाते
तब लगता है, काश !
मेरी भी एक बेटी होती ।
बेटी होती है माँ के करीब
कोख से बाहर आने के बाद
भी, उसी नाल से जुड़े होने का
एहसास कराती ।
माँ से जो मिली थी,
उसी मधुरता को वापस लौटाती
माँ के मन की व्यथा
बेटी से अधिक कौन समझेगा ?
बेटी पिता के भी, हो जाती है, करीब
जब, पिता उसे ‘‘हौसलों की उड़ान’’
का स्वाद चखाता है
सपनों से अलग दुनियां
के व्यवहार सिखाता है
अन्दर की दुनियां माँ को,
बाहर की पिता को,
समर्पित कर, बेटियाँ उड़ जाती हैं
पंछियों की तरह
किसी और की दुनियां आबाद करने
चली जाती हैं ।
दूसरे कुल की रौनक बन
उसका वंश बढ़ाती हैं,
देहरी का दीप बनी रहतीं
फिर भी माँ के करीब
होती है बेटियाँ |

मोहिनी चोरडिया

ये फागुनी होली


पलाश के, टेसू के फूलों की होली
केसर, चन्दन के पीले रंगो की होली
उड़ते अबीर गुलाल की होली ,
रंगों के अम्बार की होली
ढोल की थाप पर कोडे़ मारती औरतें, और
चहचहाते लोगों की होली
ये फागुनी होली ।

ब्रज की बरसाने की होली
लाव व बठैन की होली
भंग की तरंग में डूबी राजस्थान की होली
चंग और ढोल की थाप पर मंजीरे बजाते,
फाग गाते, लोगों की होली,
ये फागुनी होली ।

आज बसंत बहार की होली
हँस रही अमराई की होली
फूली सरसों की क्यारी की होली
खेतों और खलिहानों की होली
मदमाते मधुमास की होली,
कली, और भौंरों के अभिसार की होली
ये फागुनी होली ।

राधा और गोपाल की होली
जोरी और बरजोरी की होली
गौरी और साजन की होली
बाहों की जंजीरों की होली
आज हसीन नज़ारों की होली
ये फागुनी होली ।

देवर और भाभी की होली
जीजा और साली की होली
सारंगी सांसों की होली
सतंरगी यौवन की होली
आज मेरे हमजोली की होली
ये फागुनी होली ।

गोष्ठियों, कविसम्मेलनों की होली
गीतों और गज़लों की होली
हास परिहास और व्यंग्य की होली
प्यार के रंग बिखेरती
ये हुड़दंगी होली
ये फागुनी होली |

मोहिनी चोरडिया