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Saturday, December 31, 2011

६० के पार


जब जब अन्तर्यात्रा पे निकलता है मन
करवाता है सैर
चेतन, अवचेतन की,
गहन परतों में दबे छुपे
कमज़ोर पलों को सामने लाता है मन
खड़े कर देता है कई प्रश्न,
कभी वादी तो कभी प्रतिवादी बन जाता है मन
ढेर सारे अंतर्द्वद पैदा कर, एक उलझन सी
दे जाता है, मन ।
सर्कस के जोकर की तरह
असल ज़िन्दगी की पीड़ा को भुलाने के लिए
लगाता है कई मुखोटे, और
दूर हो जाता है ज़िन्दगी के ठोस धरातल से
कही सामना न हो जाये अपनी कमजेरियों से,
अंतर्द्वंदों से बचा नहीं जा सकता,
उन्हें जीना और भोगना होता है ।
व्यक्ति के नाम में
बहुत कुछ होता है
शब्दों में बहुत ताकत होती है।
उसमें
लिखी होती है
इबारत, पिछले जन्मों के कर्मों की
जो इस जन्म में पढ़ी जाती है,
एक संस्कार है ये, जो जन्म के साथ आता है
ज़िन्दगी से इसका गहरा नाता है
नाम पहचान है व्यकित्व का,
नाम आईना है, दर्पण है जीवन का
जैसे कि गुलाब
गुलाब प्रतीक है - खुशबु का,
खुबसूरती का, कोमलता का
इन सबसे नज़दीक का रिश्ता है गुलाब का
खुशबु - ज्ञान की
खुबसूरती - सोच विचार की, तनबदन की
कोमलता - भावनाओं की,
कितना सार्थक, यथानाम तथा गुण
हाँ, कांटो से भी एक अर्थपूर्ण रिश्ता है गुलाब का
कांटे यानि कठोरता, एक सुरक्षा कवच,
खूबसूरती,
कोमलता को चाहिये सुरक्षा,
वरना लोग कुचल देंगे |
एक और संदेश देते हैं कांटे
अनचाहे मिल जाते हैं आसानी से
मनचाहा मुश्किल से मिलता है
कई मुश्किलों से रूबरू होना होता है,
कांटों भरी राहों से
गुज़रना पड़ता है, मंजिल तक पहुँचने के लिए |
60 वर्ष तक रहे अंतर्द्वद समाप्त हों
अन्तर्यात्रा हो सिर्फ गुलाब को ढूँढने की
और खुशबु बिखेरने की ।
पहले स्वयं के लिए जियें
तभी दूसरों के लिए जीने की ताकत मिलती है ।
फिर हो जायेगें आपके साथ आप
न रहेगें ‘‘मेरे बिना मैं’’
भ्रमजाल टूटे, जीवन की भूलभुलैया
से निकलकर आप लक्ष्य तक पहुँचें,
अर्जुन की तरह सिर्फ आँख दिखाई दे,
लक्ष्यवेध अवश्य होगा
आपकी संवेदनाएँ इसमें सहायक बनें
आपकी ताकत बनें,
भावी पीढ़ी सहेज कर रखेगी आपको,
यानि कि गुलाब को
किताबों के पन्नों में, युगों तक,
जिनके पलटने पर एक झोंका खुशबु का,
भर देगा उनके नासापुटों को,
और वह भीनी सी महक होगी सिर्फ गुलाब की,
और गुलाब की ।

मोहिनी चोरडिया

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