वो तुम्हारा किताबों के बहाने घर आना
घंटो बैठकर बतियाने की चाहत लिये, फिर
बापू की तल्खी भरी आवाज़ सुन
बिना किताबें लिये लौट जाना
आता है याद आज भी ।
तुम्हारी आँखें बहुत कुछ कह जाती थीं,
फिर मिलने का वादा लेना चाहती थीं,
पैर ठिठकते थे लेकिन माँ की आवाज़ सुन,
चल पड़ते थे,
तुम्हारा वो पीछे मुड़-मुड़ कर देखना,
और, आगे चलना
आता है याद आज भी ।
फिर तुम्हारा लम्बा पत्र
विचारों की कशमकश दिखाता
साथ-साथ जीने मरने की कसमें खाता
कभी सुरमई शाम की तो कभी
तन्हाइयों भरी रात की
याद दिलाता ।
और पत्र के वापस जवाब का, वादा लेता
आता है याद आज भी।
महीनों बिना किसी खबर के बीत जाना
चाहत के सिलसिलों का उफनकर रह जाना
और हमारे प्यार का एक खूबसूरत
मोड़ पर आकर छूट जाना
आता है याद आज भी |
वो लम्हे, वो खूबसूरत लम्हे,
न तुम भूलोगे, न मैं
हम दोनों का यह कहना,
आता है याद आज भी ।
मोहिनी चोरडिया
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