लगता है
घर भी सड़क बन गए
घर भी सड़क बन गए
व्यस्तता का पर्याय बने अब घर
कोलाहल और बस कोलाहल
अंदर, बाहर, चारों ओर कोलाहल
जन्म के समय कोलाहल ,
मृत्यु के समय कोलाहल
जीवन के दोनों छोरों पर कोलाहल
शांत प्रशांत जीवन जीने की चाह
निराशा देती ही दिखती है
लगता है प्यार की विदाई हो चुकी है
जीवन से
जीते हैं सिर्फ नफरत को हम
चेहरे पर लिखे दिखते हें
नफरत के नासूर
जो साफ़ पढॅ भी जा सकते हैं
दिमाग व्यस्त रह्ता है लड़ाइयां लड़ने में
कभी शीत युद्ध का शंख बजाता
तो कभी घमासान की घोषणा करता
भावनाएं विकराल रूप लेतीं ,
जद्दोजहद करती
कभी बेजान बेमुर्र्व्वत सी ,
भाटे की तरह उतरतीं
पग-पग ,डगर-डगर कठिनाइयों से भरे
अपने पराये का भेद मन में धरे
अपनों से बेगाने बने
चलते रहते हैं हम
सुख -सुविधाओं की चाह में
जीवन की जद्दोजहद में आत्मा की आवाज़
कब दब जाती है ,
ज़मीर कब मर जाता है
इंसान को पता ही नहीं चलता
बस!जीवन को ढोते ही रहते हैं हम
मुहाने पर अड़े
अहंकार में पड़े
मुहाने से आगे बढॅ
तभी तो विसर्जन होगा
कोलाहल का ,ज़द्दोजहद का ,अहंकार का
मिलन होगा विराट से
उस समय कोलाहल ,शोर
सन्नाटा , नीरवता
सब समाप्त हो जायेंगे
बचेगी बस ..असीम शान्ति ,शान्ति और शान्ति
मोहिनी चोरडिया
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