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Saturday, December 31, 2011

निर्ग्रन्थ


ग्रन्थियाँ छोडें  निर्ग्रन्थ बनें हम
कुण्ठाएँ छोड़ें कुण्ठारहित बनें हम
भय छोड़ें भयमुक्त रहें हम
द्धन्द्व छोडं  निर्द्वंद बनें हम|
ग्रन्थियां, 
हीन भावना दर्शाती हैं
कुण्ठाएँ पालना
कमज़ोर होने की निशानी है | 
भय ?
क्या लाये थे, जिसे छोड़ने का भय ?
और मृत्यु या मौत का भय ?
कहा है - मौत का एक दिन मयस्सर है
नींद रात भर क्यों नहीं आती  ? 
शरीर और मन की जर्जरता से उबरने का एक
जरिया है मृत्यु तो
द्वन्द्व कैसा और किससे ?
स्वयं से क्यों लड़ना ?
उहापोह छोडें
नेक काम करें, नेक राह पर चलें
उस परमसत्ता की और बढ़ें
यानि कि आत्मा की और मुडें
जो हमारे ही भीतर है
ज्ञानमय, ग्रन्थिरहित,
भयमुक्त, निर्द्वंद
निरंजन निराकार ।

मोहिनी चोरडिया 

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