चम्पा जैसा रंग तुम्हारा
खिला -खिला सा
सुबह की धूप सा
सुनहरी ,
गंध तुम्हारी जैसे
गुलाब की कली ने खोल दी हों
पंखुडियां ,
तुम्हारे सुकुमार चेहरे पर
अभी -अभी धुले बालों से
झर रही पानी की बूंदें
जैसे छिटकी ओस की बूँदें पत्तों पर
लगती हैं प्यारी ,
तुम्हारा रूप पावस में नहाया सा ,
या
खिला हो कमल जैसे ,
अदृश्य पवन सी तुम
बहती हो
एहसास करातीं
तुम्हारी उपस्तिथि का ,
मेरा मन तुम्हें
अपना बना लेता है
तुम्हें देखना चाहता है
बिलकुल वैसा ही
जैसा मैनें तुम्हें देखा था
बरसों पहले
जब तुम निकल रहीं थीं
बाहर,
कॉलेज की लाइब्रेरी से |
मोहिनी चोरडिया
No comments:
Post a Comment