बीत गये जीवन की किताब के,
पन्ने फड़फड़ाये
उन में दबे सूखे गुलाबों ने
स्मृतियों पर पड़ी धूल के आवरण हटाये ।
एक भीनी सी खुशबु ने
उमग कर
उमग कर
भर दिया नासापुटों को
फिर, बिखर गई, चारों ओर मेरे,
मन बहकने को हुआ आतुर,
तन सिहर गया ।
खूबसूरत पल गुज़रने लगे
आँखों के सामने से
लगे चटकने, दीपावली के पटाखों
की लड़ियों से
फुलझड़ियों की सी सतंरगी आभा बिखेरते
चकरी से घूम गये मन में ।
एक मीठी सी मुस्कान,
जैसे दीपावली की मिठाई
ने,चेहरे को नई रंगत दी
इक ज़माने के बाद खिल उठा मन,
पुलक गया तन
दीपावली के अनार सा ।
बरसों बाद आईना
देखने का मन हुआ
आँखें मूँद
फिर से जिया मैंने,
फिर से जिया मैंने,
उन पलों को
जो गुज़रे थे कभी तुम्हारे साथ ।
मोहिनी चोरडिया
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