हवा आई है मदमाती फागुनी रे
भरे जीवन में रंग ये नये
नेह देह गंध को बिखेरती रे
भरे जीवन में रंग ये नये ।
रतनारी अंखियों से पूछ आई है
रसवंती गालों को चूम आई है
भँवरों की गुनगुन भी साथ लाई है
भरे जीवन में रंग ये नये ।
कुंकुम अबीर को नभमंडल में बिखेरती
कोयल की कूक को अमराई में उकेरती
टेसू और पलाश के रंग साथ लाई है
भरे जीवन में रंग ये नये ।
कचनारी काया को नेनौं से बींधती
भादों की रातों को मन में उमेगती
परदेसी प्रियतम को साथ लाई है
भरे जीवन में रंग ये नये ।
मोहिनी चोरडिया
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