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Saturday, December 31, 2011

मेरे मन


मेरे मन!
तुमने अपनी खुशी खो दी ?
मायूस हो गये,
मुर्झा गये ?
किसी ने तुमको झिड़का
या दर्द दिया,
अपमानित, प्रताड़ित किया और
तुमने घुटने टेक दिये, क्यों ?
क्यों किसी की ओछी बातों से ,
अपशब्दों की बौछार से,
कठोर शब्दों के तीरों से
छलनी हो गये ?
कमज़ोर हो गये ?
समझना, वो शब्द
तुम्हारे लिए थे ही नहीं
सिर्फ किसी को अपने
दिल की कड़वाहर निकालने का
माध्यम मिल गया था ।
सुना होगा,
जो जिसके पास होता है,
वही तो देता है ?
जीवन हार मानने का नाम नहीं,
संघर्ष भी इसे मत समझना
मान अपमान से ऊपर उठकर,
शांत बन जाओ ।
उन, कड़वी बातों को
अपने ऊपर से, ऐसे गुज़र जाने दो
जैसे आवारा बादल,
बस! जैसे ही उन
घने काले बादलों की पर्त हटेगी
तुम सूरज की तरह निकल आना
नहाये, धोये से,
स्फूर्त तरोताज़ा ।

मोहिनी चोरडिया


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