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Saturday, December 31, 2011

स्फुरण


बांसती बेला है
रंगों का मेला है
गंधों का रैला है
ऐसे में कौन, बैठा अकेला है ?

प्यार से पुकार लो
जी भर दुलार लो
छोटा सा जीवन है
प्रीत की फुहार लो ।

लता पेड़ गले मिले
कली भौंरों के मन खिले  
धरा अम्बर भी मिले
फिर क्यों किसी का मन मैला है ?

चली है प्यार की पुरवाई
प्रकृति ने है सरगम गाई
पशु-पक्षी सबके मन को है भाई
इन्सान, तुम भी मन को उजाल लो ।


मोहिनी चोरडिया 

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