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Saturday, December 31, 2011

मन शिवसंकल्पमस्तु


फूलों का कांटों से
सुख का दुःख से,
यौवन का बुढ़ापे से
जीवन का मृत्यु से
संघर्ष जारी है ।
बुद्धि का तर्क से
ज्ञान का अहंकार से
प्रेम का घृणा से
मधुरता का कठोरता से,
संघर्ष जारी है ।
यौवन का निषेधों, नियंत्रणों से, अकुंशों से
कर्तव्यों का अधिकारों से
संस्कारों का वीभत्सता से
अनुशासन का स्वच्छंदता से,
संघर्ष जारी है ।
संघर्ष वेदना है,
मन को रीत देता है
वेदना का ज़हर
कब तक तड़पायेगा
मानव मन को?
सारे संघर्ष मन में ही जन्म लेते हैं,
सारी लड़ाइयाँ युद्ध भूमि मे लड़ने से पहले,
मन में लड़ ली जाती हैं ।
मन का ये संघर्ष,
लक्ष्मण रेखा को
पार करने का संघर्ष है,
अन्जाम से सब वाकिफ हैं
फिर भी गाफिल हैं ।
सोचें, समुद्र मर्यादा को ना माने,
नदी किसी किनारे को ना जाने,
खेत बाढ़ की ना माने
चंचल चित्त , मर्यादा ना जाने
मन कुरूक्षेत्र बन जाये,
संकल्प विकल्पों में खो जाये,
उससे पहले, क्यों न ऐसा हो, कि
मन तर्क को छोड़, श्रद्धा से जुड़ जाये
मन शिवसंकल्प से युक्त हो जाये
तो सारे संघर्षों से मुक्त हो जाये
जीवन की मधुरता रह जाये
मन की असीम ऊर्जा
जीवन के विकास की
यात्रा बन जाये ।

मोहिनी चोरडिया

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