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Wednesday, August 31, 2011

परमसत्ता "अदृश्य का दृश्य हो जाना "

भीषण अंधकार

गहरा तम

डरावना सन्नाटा

पसरा पड़ा था अंदर

मन के बहुत अंदर तक

हाथ को हाथ नहीं सूझता था

अँधेरी गलियां पार करते- करते

समय बीतता गया

मन रीतता गया

रास्ते के कंकरों पत्थरों से

पैर लहूलुहान हो गए

थम से गए ,

लगा जीवन हाशिये पर आ गया

एक दिन एक घंटी बजी दिमाग में ,

शंखध्वनी हुई

एक दीप तो जलाया ही जा सकता है

रास्ता तो बुहारा ही जा सकता हे

कई वर्षों से बिना कुछ किये

प्रमाद में चलती रही हूँ यूँ ही |

घंटी बजी तो

विचारों में परिवर्तन की

लहर उठी

दृष्टि बदली

सृष्टि का नया रूप दिखा

रौशनी की किरण दिखी

बस ,बस उसी क्षण

तैयारी हो गई

आगे के जीवन की

सुंदर जीवन की

घंटी किसने बजाई

आज तक समझ नहीं पाई

कहीं कुछ तो है

जो हमें राह दिखाता है ,

निराशा के क्षणों में

आशा की किरण बनकर आता है

गिरने पर उठाता है ,

चाहे उस अदृश्य ताकत को

हम देख नहीं पाते

आभार! आभार! आभार!

उस परमसत्ता का

परमात्मा का

आत्मा का


मोहिनी चोरडिया

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