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Tuesday, November 29, 2011

खनक


हाँ मैं तुझे भुला
न पाऊंगा
जब भी कोई खनकती आवाज़
सुनाई देगी
तुझे आसपास पाऊँगा ।
उदास चेहरे पर
बड़ी बड़ी हिरणी जैसी आँखे
जब भी देखूंगा
और उनकी चमक, जब भी
अपने रंग बिखेरेगी
तुझे आसपास पाऊँगा ।
शर्माती लजाती अदाओं से
दिल को धड़काता
बाहों में समाने को आतुर,
कोई साया,
ऐसा समां जब भी बनेगा
तुझे आसपास पाऊँगा ।
किसी चौदहवीं की रात
चाँद जब झांकेगा खिड़की से
और बाहें मेरी होंगीं आतुर
चांदनी सा बदन समेटने को
तुझे आसपास पाऊँगा |
आसमां में दिखेगा इन्द्रधनुष
फिजां  में तैर रही होगी खुशबु
तुझे आसपास पाऊंगा
हाँ! मैं तुझे
भुला न पाऊँगा ।

मोहिनी चोरडिया 

मेरी माँ


एक दिन माँ सपने में आई
कहने लगी, सुना है
तूने कविताएँ बनाईं ?
मुझे भी सुना वो कविताएँ
जो तूने सबको सुनाई
मैं अचकचाई
माँ की कहानी माँ को ही सुनाऊँ !
माँ तो राजा- रानी की कहानी
सुनाती थी
उसे एक आम औरत की कहानी कैसे सुनाऊँ ?
माँ इंतजार करती रही
जैसा जीवन में करती थी,
कभी खाना खाने के लिए
तो कभी देर से घर आने पर
घबराई सी देहरी पर बैठी
पिताजी की डांट से बचाने के लिए |
आँखें नम हुईं
आवाज भर्राई
अपने को नियंत्रित कर
उससे आँखें मिलाये बगैर
उसे कविता सुनाई |
एक औरत थी
औसत कद , सुंदर चेहरा
सुघड़ देह
बड़ी- बड़ी आँखें
घूँघट से बाहर झाँकतीं
सुबह घर को, दोपहर बच्चों को
रात पति को देती
हमेशा व्यस्त रहती
पति की प्रताड़ना सहती ,
बच्चों को बड़ा करती
घर आये मेहमानों का स्वागत करती ,
सत्कार करती
फिर भी कभी न थकती
पति और बच्चों की खातिर
जिसकी रात भी दिन ही रहती
सुघड हाथों से घडी गई रोटियां क्या, सभी पकवान
रसोई घर की बढ़ाते शान .
जो कम रुपयों में भी घर चला लेती
मुफ़लिसी में भी
सभी रिश्ते निभा लेती .
शरीर की शान, आभूषण, रहित रहती
लज्जा को अपना आभूषण कहती
बुरे वक्त में
घर की इज्जत बचाती
शरीर से छोटी वो
अपने कद को हमेशा उँचा रखती ,
बस देना ही जो अपना धर्म मानती
पति की सेवा ,बच्चों की परवरिश में
पूरा जीवन निकाल
एक दिन हो गई निढाल
जीवन की अंतिम सांस
बेटी की गोदी में निकाल
विदा कह गई इस जीवन को
शायद यह कहती -कहती
अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो ,
मैंने माँ की और देखा,
माँ का चेहरा सपाट था
बिना उन हाव-भावों के जो राजा -रानी की कहानी
सुनाते वक्त उसके चेहरे पर होते थे ,
..वो धीमे से मुस्कुराई ,फिर कहा ..
सच ही लिखा है, औरत की तकदीर जन्मों से यही है
.फिर भी एक कविता ऐसी लिख
जिसमें एक राजा हो एक रानी हो
दोनों की सुखद कहानी हो .
सपने तो अच्छे ही बुननें चाहियें
शायद कभी सच हो जाएँ !
वो वापस चली गई यह कहकर
फिर आउंगी ,लिख कर रखना राजा- रानी की कहानी
कभी तो सच होगी ?
जो मेनें अपनी बेटियों के लिए बुनी थी |


मोहिनी चोरडिया

Thursday, November 10, 2011

पालनकर्ता

भोर
सोया जगता सा जीवन, बस
यही समय है
प्रार्थना करने का
आज के दिन की यात्रा
आरम्भ करने का |

यही समय है ,जब
हाथ उठें उसकी प्रशंसा में
उसके सम्मान में
जिसकी सारी कलाकृतियां
मन को लुभा लेती हैं 
आल्हादित कर जाती हैं|

चाहे दुधिया नीले पहाड़ों पर
उतरती सुनहरी धूप हो
या सुनहरी रुपहरी, मोतियाँ ,बैंजनी
बादलों से बना क्षितिज़
और उसकी ओट से झांकता
बस वह ही नज़र आता है
संसार का पालनकर्ता
सात घोड़ों के रथ पर सवार |

मुस्कुराते फूल हों और
उत्सव मनाते बगीचे
या गीत गाते खेत
प्रसन्नता से झूमती लहराती
गेहूं की बालियाँ हों
या इतराती नाचती तितलियाँ|

तारों की बरात हो
या धवल चाँदनी
अठखेलियां करती चन्दा से
मन को पुलक और आँखों को तृप्ति देते
हर जगह फैले हैं
उसके ही रंग |

कंहीं मंदिर के पट खुलते हैं
तो कंहीं घंटे ,घडियालों की कर्णप्रिय ध्वनि
दूर से आती चितपरिचित सी लगती है
लगता है सुन रही हूँ इन्हें जन्मों से
और सुनती रहूंगी आगे भी
जहाँ भी मैं रहूँ |

मोहिनी चोरडिया