भोर
सोया जगता सा जीवन, बस
यही समय है
प्रार्थना करने का
आज के दिन की यात्रा
आरम्भ करने का |
यही समय है ,जब
हाथ उठें उसकी प्रशंसा में
उसके सम्मान में
जिसकी सारी कलाकृतियां
मन को लुभा लेती हैं
आल्हादित कर जाती हैं|
चाहे दुधिया नीले पहाड़ों पर
उतरती सुनहरी धूप हो
या सुनहरी रुपहरी, मोतियाँ ,बैंजनी
बादलों से बना क्षितिज़
और उसकी ओट से झांकता
बस वह ही नज़र आता है
संसार का पालनकर्ता
सात घोड़ों के रथ पर सवार |
मुस्कुराते फूल हों और
उत्सव मनाते बगीचे
या गीत गाते खेत
प्रसन्नता से झूमती लहराती
गेहूं की बालियाँ हों
या इतराती नाचती तितलियाँ|
तारों की बरात हो
या धवल चाँदनी
अठखेलियां करती चन्दा से
मन को पुलक और आँखों को तृप्ति देते
हर जगह फैले हैं
उसके ही रंग |
कंहीं मंदिर के पट खुलते हैं
तो कंहीं घंटे ,घडियालों की कर्णप्रिय ध्वनि
दूर से आती चितपरिचित सी लगती है
लगता है सुन रही हूँ इन्हें जन्मों से
और सुनती रहूंगी आगे भी
जहाँ भी मैं रहूँ |
मोहिनी चोरडिया
No comments:
Post a Comment