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Sunday, January 1, 2012

मुक्तक


लो! मैनें मिटा ली अपनी हस्ती आज,
शायद, तुम्हारे ख्वाबो को मिल सके परवाज|

तुम्हारे कदमों के निशां ,दूर तक चलें, 
लो मैनें बदल ली अपनी राह |


मोहिनी चोरड़िया 

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