गिल्ली -डंडे पर जिसे वारा था
वो बचपन कितना प्यारा था |
मांझे पर चढी पतंग के पेच से जो हारा था
वो बचपन कितना न्यारा था |
आम इमली के पेड़ों से रिश्ता बंनाता
वो बचपन कितना खिलखिलाता था |
नाना -मामा के प्यार की शीतल छावं में बिताया
वो बचपन कितना दुलारा था |
बारिश के पानी में ,पोखरों में कागज़ की कश्ती बहाता
वो बचपन कितना हमारा था |
गली -कूचों में बीता बचपन, हाँ ! हमारा था वो बचपन
जिस पर वारा था, माँ ने अपना तन-मन
बलैयां लेकर कहा था .........
तीन लोक का राज निछावर इस बचपन पर |
मोहिनी चोरडिया
चेन्नई
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